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साठ साल में पहली बार …….

sach ke liye sach ke sath
sach ke liye sach ke sath
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2014 के आम चुनाव के बाद इस देश के कर्णधार जो कुछ कर रहे हैं उसके साथ 60साल में पहली बार का टैग लगा होता है। कमोवेश यह सच है भी। आजाद भारत में यह पहला अवसर है जब चुनाव के सियासी सर्कस में अवाम को दिखाए गए सपने इस कदर दुःस्वप्न में तब्दील हुए। बात ” बहुत हुई मंहगाई की मार… अबकी बार मोदी सरकार ” के सपने की हो ,संसद की सीढ़ियों पर भुलोष्ठित प्रणाम के बाद “संसद को दागियों से मुक्ति ” के सपने की ,भ्रष्टाचार की नकेल कसने के लिए ” न खाऊंगा .. न खाने दूंगा “के सपने की ,सारे सपने एक बुरे ख्वाब में तब्दील हो चुके हैं। सीमा की चौकसी की बात हो या चीन ,पाकिस्तान के सन्दर्भ में 56ईंच के सीने के हबाले से बोले गए बड़े बोल की। यथार्थ के धरातल पर स्थिति बहुत हताशाजनक है। 60साल में पहली बार इस मुल्क के एयर बेस पर आतंकी हमला ,पूर्व सूचना के वावजूद आतंकी हमले को रोक पाने में नाकारापन से हम रूबरू हुए। पाकिस्तानी टीम को इस हमले की जांच की अनुमति और पाकिस्तानी टीम की जांच रिपोर्ट कोढ़ में खाज के रूप में हमारे सामने है। 60साल में पहली बार देश ने ऐसी लचर विदेश नीति देखी की पडोसी मुल्क नेपाल ने हमारे खिलाफ संयुक्त राष्ट्र संघ में जाने की बात की प्रधान मंत्री ने रहस्यमयी पाकिस्तान की रहस्यमयी यात्रा की। 60साल में पहली बार किसी प्रधान मंत्री ने विदेशी धरती पर अपने मुल्क की सियासी गन्दगी का विषवमन किया। 60साल में पहली बार देश ने सेल्फी फोबिया का मरीज प्रधान मंत्री देखा। 60साल में पहली बार देश ऐसे प्रधान मंत्री को देख रहा जो खुद को कभी दलित ,कभी पिछड़ी और कभी अति पिछड़ी जाति का बताये। मुझे याद नहीं की किसी मुल्क के प्रधान मंत्री को कभी अपनी जाति का ढिंढोरा पीटने की जरुरत पड़ी हो। प्रधान मंत्री को शायद इस मुल्क के लोगों की याददाश्त पर भरोसा नहीं है तभी तो वह बार बार खुद को गरीब का बीटा ,चाय बेचने बाला बताते हैं।,विधान सभा चुनावों में वो अपनी माताश्री का बखान करते नजर आ रहे हैं की उनकी माताश्री दूसरों के घरों में बर्तन मांजा करती थीं। इसे वोटरों की भावनात्मक ब्लैकमेलिंग ही कहा जा सकता है।
मोदी जी को पता होना चाहिए की विश्व में वह एकलौते प्राणी नहीं हैं जिनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि आर्थिक विपन्नता की रही हो और उन्होंने अपने मुल्क में खुद को अग्रगण्य शख्सियत साबित किया हो। नजीर के तौर पर श्रद्धेय एपीजे अब्दुल कलाम साहब की आदर्श शख्सियत हमारे सामने है।उन्होंने कभी अपनी जुबानी किसी सार्वजानिक मंच से मोदिनुमा प्रलाप नहीं किया। उन्होंने जो मुकाम हासिल किया.छल छद्म ,झूठ से नहीं अपनी प्रतिभा से किया।
अच्छा होता की संघ परिवार सहित भाजपा के थिंक टैंक कहे जाने बाले लोग आदरणीय प्रधान मंत्री जी को पद की गरिमा के मद्देनजर भाषणबाजी ,बयानबाजी का पाठ पढ़ाएं। उन्हें उन सपनो की याद दिलाएं जो उन्होंने 2014 की चुनावी रैलियों में बेचे थे। .उन्हें बताएं की ये पब्लिक है ये सब जानती है और उचित वक़्त पर जबाब देना भी जानती है।

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