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भारतीय संविधान में विकास की दृष्टि से पिछड़ी जातियों के लिए एक तयशुदा समयावधि के लिए आरक्षण की व्यवस्था करते समय संविधान लेखन समिति ने कल्पना भी न की होगी की यह व्यवस्था भविष्य में इस देश के लिए नासूर सिद्ध होगी । सियासी स्वार्थों ,सियासी वजहों से आरक्षण की व्यवस्था की तयशुदा समयावधि तथा लाभभोगी जातियों की सूची सुरसा के मुँह की भांति बढ़ती रही। वोट बैंक की दृष्टि से लाभभोगी जातियों की सूची को विस्तार देने का सिलसिला बदस्तूर जारी है।लाभभोगी जातियों को शिक्षा ,नौकरी ,प्रोन्नति ,त्रिस्तरीय पंचायतों से लगायत विधान मंडलों,संसदीय चुनाव तक में आरक्षण का लाभ दिया जाने लगा। आरक्षण का लाभ लेने के लिए विभिन्न जातियों के लामबंद आंदोलन होने लगे हैं।
वोट बैंक की सियासत आरक्षण के सन्दर्भ में संबैधानिक प्राविधानों की ऐसी तैसी करती रही है। समय समय पर न्यायपालिका ने हस्तक्षेप भी किया और दिशा निर्देश भी दिए परन्तु उनकी धार कुन्द होने की वजह से हालात बद से बदतर होते गए। वोट के इस सियासी हथियार ने समाज में जातियों के नाम पर तमाम खाईयाँ खोद डाली हैं जिनका खामियाजा हम सब जातिय वैमनस्य ,विद्वेष के रूप में भोगने को अभिशप्त हैं। याद कीजिये वी.पी. सिंह सरकार का कार्यकाल।जब भगवा पल्टन के कमण्डल और चौधरी देवी लाल की बढ़ती सियासी महत्वाकांक्षा को बेअसर करने के उद्देश्य से मंडल कमीशन का सियासी दांव खेला गया था। इस सियासी दांव की जैसी प्रतिक्रिया मंडल कमीशन के खिलाफ सड़कों पर देखी गई उससे युवा पीढ़ी के मन में पनपते क्षोभ और आक्रोश का अनुमान लगाया जा सकता है।मण्डल समर्थक ,मण्डल विरोधी आँदोलन ,गुजरात का पाटीदार आंदोलन और हालिया जाटआंदोलन की कीमत अरबों की राष्ट्रीय सम्पत्ति के नुकसान के रूप में इस देश को चुकानी पड़ी है।जातियों को विकसित करने के खेल में देश का विकास प्रभावित हो रहा है। आरक्षण की आग ने इस देश के तमाम नौजवानों की जिंदगी खाक कर दी। इस सियासी खेल ने अनारक्षित सम्बर्ग की युवा पीढ़ी को अवसाद और कुंठा का शिकार बनाया है। इस सियासी खेल ने सामाजिक समरसता ,सद्भाव को जैसी क्षति पहुंचाई है वह जगविदित है।
वोट बैंक की सियासत का एक चेहरा हम देख चुके हैं। मायावती सरकार ने नारी अस्मिताऔर आबरू को जातीय खांचे में बांटते हुए बलात्कार के मामलों में दलित जाति की बलत्कृत महिला के लिए आर्थिक मुआवजा देने की व्यवस्था की। एससीएसटी ऐक्ट के दुरूपयोग के अनगिनत मामले सामने आये। खबर है की केंद्र के मोदी सरकार मायावती सरकार के नक़्शे कदम पर चलते हुए दलित जाति की बलत्कृत महिला के लिए 10 लाख रुपये का आर्थिक मुआवजा देने की व्यवस्था और दलित जाति की बलत्कृत महिला से जुड़े मामलों में कार्यवाई की समय सीमा तय करने जा रही है। ये वही मोदी हैं जिनका चुनावी जुमला था सबका विकास सबका साथ। नारी अस्मिताऔर आबरू को जातीय खांचे में बांटने से घृणित सियासत और क्या हो सकती है ?</em>
आरक्षण की संबैधानिक व्यवस्था करते समय यदि संविधान लेखन समिति को आभास होता की सियासी पार्टियां सियासी स्वार्थ साधने के लिए सियासी खेल खेलेगी ,इस व्यवस्था की ईमानदारी से समय समय पर समीक्षा नहीं करेंगी तब उसने संविधान में ही आरक्षण के सियासी दुरूपयोग की रोकथाम के प्राविधान भी किये होते।
विकास की दृष्टि से पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की संबैधानिक व्यवस्था समाज और देश के लिए नासूर सिद्ध हुई है।जातियों को विकसित करने के खेल में देश का विकास प्रभावित हो रहा है। पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की संबैधानिक व्यवस्था का लाभ व्यवहारिक दृष्टि से आज भी इसके बाजिब हकदारों को नहीं मिल सका। लाभभोगियों में कुपात्रों का प्रतिशत काफी ज्यादा है। समय का तकाजा है की न्याय पालिका आरक्षण की संबैधानिक व्यवस्था की गहन समीक्षा करे और आरक्षण की सियासत के तहत खोदी गई खाईयों को पाटने की सार्थक पहल करे। इन खाईयों को पाटने का कारगर उपाय आर्थिक आधार पर आरक्षण की सर्वमान्य नीति और साफ़ नियत से उसका क्रियान्वयन ही हो सकता है ,जो सियासी सौदागरों के नापाक मंसूबों को लगाम दे सकेगा।
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