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अक्ल बड़ी की भैंस ? प्रति प्रश्न न करे बच्चा

sach ke liye sach ke sath
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वर्षों पूर्व यूपी पुलिस की कार्य प्रणाली पर उच्च न्यायालय के एक विद्वान न्यायमूर्ति ने तल्ख़ टिप्पणी करते हुए यूपी पुलिस को संगठित अपराधियों का गिरोह कहा था। यह तल्ख़ टिप्पणी आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। पीड़ित पक्ष के प्रति ,आम नागरिकों के प्रति उसके व्यवहार ,उसकी कार्य प्रणाली की वजह से उसके प्रति जो आम धारणा है उसका नतीजा यह है की लोगों को अपनी जायज बात के लिए भी किसी न किसी बिचौलिए को तलाशना होता है।
जब जब सूबे में नए डीजीपी ने कार्यभार सम्भाला है पुलिस को जनसामान्य के प्रति सद्व्यवहार की नसीहत दी है। जिसका असर संतों के प्रवचन जैसा ही होता रहा है । संत वचन लोग ध्यानमग्न होकर सुनते हैं पर उसपर अमल नहीं करते। वर्तमान डीजीपी ने भी कार्यभार सम्भाला तो जनसामान्य के प्रति सद्व्यवहार की नसीहत देने की परम्परा का निर्बाह किया। असर कहीं नजर नहीं आता।
जनसंख्या और उपलब्ध पुलिस बल का अनुपात अपराध नियंत्रण की दृष्टि से नाकाफी है ,संसाधनों की दृष्टि से भी पुलिस बल बहुत संतोषप्रद स्थिति में नहीं है। संसाधनों की कमी उतनी बड़ी समस्या नहीं है जितनी बड़ी समस्या जनसँख्या और पुलिस बल की उपलब्धता है। इस उपलब्ध पुलिस बल का लगभग 15प्रतिशत ‘माननीयों’ की हिफाजत में तैनात होता है।इसके आलावा विभिन्न विभागों में भी इनकी तैनाती होती है। ऐसी स्थिति में अपराध नियंत्रण एक बड़ी चुनौती है। इस चुनौती का सामना करने में जनसहयोग की बड़ी भूमिका हो सकती है जिसके लिए पुलिस के चाल ,चरित्र ,चेहरे को बदलना होगा। जनसामान्य में बनी पुलिस की आम छवि को सुधारना होगा।
संवेदना के धरातल पर पुलिसिया तंत्र अमूमन असंवेदनशील होता है। आलम यह है की पुलिसिया तंत्र अपने पुलिस परिवार के प्रति भी असहिष्णु ,असंवेदनशील होता है। 13 मई 016 की रात हुई एक वारदात की चर्चा प्रासंगिक है। मुग़ल सराय -पटना रेल मार्ग के चौसा रेलवे स्टेशन पर मुग़ल सराय -बक्सर पैसेंजर में मुग़ल सराय जीआरपी के दो जबानों को बदमाशों ने गोली मार दी ।उनकी इंसास राईफल लूट ली। बलिया के नरहीं का रहने बाला जीआरपी का जबान अभिषेक सिंह मारा गया दूसरा जबान नंदलाल सर सुन्दर लाल चिकित्सालय के ट्रामा सेंटर में जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहा है।
पुलिस परिवार का एक जबान मारा गया और पुलिस तंत्र 18 घंटे तक सीमा विवाद में उलझा रहा।संचार क्रांति के दौर में जो पुलिस तंत्र 18 घंटे तक अपराध की सीमा तय न कर सके उसकी कार्य प्रणाली ,उसकी कार्य दक्षता के बारे में कुछ कहने की जरूरत नहीं। सीमा विवाद तय करने के लिए वाराणसी के आईजी जॉन श्री एस.के.भगत और डीआईजी रेलवे रामपाल को आना पड़ा।
रेल यात्रियों की हिफाजत के लिए तैनात पुलिस के जबान यात्रियों की कैसी हिफाजत करते हैं यह जगविदित है। बदमाशों ने इन जबानों को गोली मारी और वह इंसास राईफल लूट ली जो इनके पास बदमाशों की किसी ऐसी ही वारदात से यात्रियों की हिफाजत के लिए मौजूद थी।यह वारदात उपलब्ध असलहों के प्रयोग की कार्य दक्षता की कहानी खुद कहती है। वारदात के दूसरे दिन नक्सल प्रभावित अहरौरा थाने पर मिर्जापुर जिले के पुलिस अधीक्षक श्री अरविन्द सेन हतप्रभ रह गए यह देख कर की थाने के शस्त्रागार में उपलब्ध असलहों को वहां तैनात सब इंस्पेक्टरों में से कोई खोल तक न पाया। एक अन्य प्रकरण देखें। मिर्जापुर जिले में सरदार कर्मजीत सिंह डीआईजी थे। मड़फा फायरिंग सेंटर पर संपन्न राईफल -रिवाल्वर शूटिंग प्रतियोगिता के पुरस्कार वितरण समारोह में वह बतौर मुख्य अतिथि आये थे । पुलिस अधीक्षक स्तर प्रतिभागियों में से कोई भी टारगेट पर निशाना नहीं लगा पाया था। विजेताओं का निर्धारण टारगेट के नियर बाई निशाना लगाने बालों में से किया गया था।
जीआरपी जबान की हत्या की इस वारदात के कारकों पर शीर्ष पुलिस प्रशासन को आत्ममंथन करने की जरुरत है। पुलिस की कार्य दक्षता ,उसके चाल ,चरित्र चेहरे पर मौजूद बदनुमा धब्बों को साफ़ करने के लिए पुलिस तंत्र की मुकम्मल ओवरहालिंग की जानी चाहिए। उसकी हनक ,उसका मनोवैज्ञानिक खौफ जनसामान्य के मन मष्तिष्क पर न हो अपराधियों पर हो यह तब तक संभव नहीं है जब तक आत्ममंथन की ईमानदार पहल नहीं होगी।
अन्ततः। यूपी पुलिस की सक्रियता का अपना पैमाना है। वह गम्भीर से गम्भीर आपराधिक वारदातों पर आराम बड़ी चीज है मूँह ढँक के सोइए को चरितार्थ करती है और वीवीआईपी भैंस की बरामदगी के लिए अलादिनी चिराग घिसती है। एक विद्यालय में गुरूजी ने सबाल किया -बच्चों बताओ अक्ल बड़ी की भैंस ? एक बच्चे ने गुरूजी से प्रति प्रश्न किया -गुरुजी पहले यह बताइये की भैंस है किसकी ? उम्मीद कीजिये की शीर्ष पुलिस प्रशासन आत्ममंथन करेगा और कुछ ऐसा करेगा की अकल बड़ी की भैंस ? के सबाल पर गुरूजी से कोई बच्चा प्रति प्रश्न न करे।

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