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मुद्दा :वाचिक भ्रम जाल है चतुर्थ स्तम्भ की अवधारणा

sach ke liye sach ke sath
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खबरों की दुनिया में जीने -मरने बाला पत्रकार जब खुद किसी हादसे का शिकार हो जाता है ,या उसे खामोश करने के लिए अराजक तत्व मौत की नींद सुला देते हैं वह एक अदद घटनात्मक खबर बन कर रह जाता है। ख़बरों की दुनिया हो या हमारा समाज उसे किसी पत्रकार की नृशंस हत्या उद्वेलित नहीं करती। मुख्य मंत्री या प्रधान मंत्री के विवेक की कुम्भकर्णी निद्रा नहीं टूटती। संस्थाओं ,संगठनों से कलमकार को ,उसके परिवार को न्याय दिलाने के लिए कोई आवाज नहीं उठती।
अभिभावकों के विश्वास,उनके भरोसे को धोखा देते हुए देर रात ब्वाय फ्रेंड के साथ मौज मस्ती करने निकली एक छात्रा दिल्ली में गैंग रेप की शिकार होती है और उसका दुखद अंत होता है तब जो मीडिया तिल का ताड़ बनाने में मशगूल थी उसके लिए पत्रकार राजदेव रंजन की निर्मम हत्या एक अदद रूटीन की खबर भर बन कर रह जाती है । विरोध प्रदर्शन का जैसा तूफ़ान निर्भया काण्ड को लेकर खड़ा हुआ उसका एक फीसदी भी पत्रकार राजदेव रंजन की निर्मम हत्या मामले में नजर नहीं आया। निर्भया के परिवार की आर्थिक मदद के लिए केंद्र सरकार और कई राज्य सरकारों ने तत्परता और उदारता का परिचय दिया ,तमाम संस्थागत और व्यक्तिगत मदद भी बिन मांगे दी गई। कई सरकारी योजनाओं की घोषणा की गई।
विरोध का जो तूफ़ान किसी निर्भया के हत्यारों ,बलात्कारियों को फांसी की मांग के साथ उठा था कहाँ हैं उस तूफ़ान के सूत्रधार ? किसी निर्भया के परिवार की आर्थिक मदद के लिए जिस त्वरित गति से केंद्र सरकार ,कुछ राज्य सरकारें सामने आईं ,संस्थागत और व्यक्तिगत मदद का सिलसिला चला वैसा कुछ पत्रकार राजदेव रंजन की निर्मम हत्या मामले में क्यों नजर नहीं आया ? इन सबालों की निष्पक्ष पड़ताल करें तब आप पाएंगे की निर्भया काण्ड की उत्तरवर्ती पटकथा मीडिया ने ही लिखी थी। ऐसी पटकथा जिसने तूफ़ान भी खड़ा किया और एक भावनात्मक उद्वेलन भी पैदा किया था।
पत्रकार राजदेव रंजन की निर्मम हत्या मामले में इन पंक्तियों के लिखे जाने तक उस मीडिया घराने से जिसके लिए वह कार्यरत थे ,केंद्र या बिहार सरकार से या किसी संस्था ,समूह या व्यक्ति से राजदेव रंजन के परिवार की आर्थिक मदद की कोई पहल होती नजर नहीं आई। पत्रकार राजदेव रंजन को सच्ची श्रद्धांजलि देनी है तब कलमकारों को लोकतंत्र के चतुर्थ स्तम्भ के वाचिक तिलिस्म को समझना होगा। चतुर्थ स्तम्भ की वाचिक अवधारणा छलावा मात्र है। बिडम्बना ही है की पत्रकार वाचिक धरातल पर तो लोकतंत्र का चतुर्थ स्तम्भ है परन्तु संवैधानिक धरातल पर उसे भी संविधान में नागरिकों को प्रदत्त मूलाधिकार ही हासिल हैं। यदि वास्तव में लोकतान्त्रिक ढाँचे में इस चतुर्थ स्तम्भ की अवधारणा के प्रति हमारी विधायिका ईमानदार है तव आजादी के लगभग सात दशक बाद भी इस चतुर्थ स्तम्भ को संवैधानिक मान्यता ,संवैधानिक दर्जा क्यों नहीं दिया गया? इस चतुर्थ स्तम्भ को संवैधानिक मान्यता ,संवैधानिक दर्जा देने की जंग कलमकारों को ही लड़नी होगी। कलमकारों ,पत्रकार संगठनों को एकजुट होकर यह जंग सड़क से संसद तक लड़नी पड़ेगी।
पत्रकारों की सामान्य ,दुर्घटना ,या हत्या जन्य मृत्यु की स्थिति में उसके परिवार को न्यूनतम 10 लाख की सुनिश्चित आर्थिक मदद के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए इन पंक्तियों के लेखक ने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्री राम नाईक से 22 सितम्बर 2014 को मुलाक़ात कर उनसे पत्रकार कल्याण निधि की स्थापना के सन्दर्भ में विस्तार से चर्चा की। राज्यपाल श्री राम नाईक ने सूबे की सरकार को पूर्वांचल प्रेस क्लब उत्तर प्रदेश (लेखक पूर्वांचल प्रेस क्लब उत्तर प्रदेश का प्रदेश अध्यक्ष है ) क़ा ज्ञापन अपनी संस्तुति के साथ भेजा भी। सूबे की सरकार की नजर में कलमकार वोट बैंक होते तब सकारात्मक नजरिये से कार्यवाई भी होती।
बहरहाल पत्रकारों ,कलमकारों को चतुर्थ स्तम्भ के वाचिक तिलिस्म को तोड़ने के लिए उन तल्ख़ हकीकतों को समझना होगा जो राजदेव रंजन हत्या काण्ड जैसे मामलों में हमारे सामने आती हैं।
सीवान में हिन्दुस्तान के ब्यूरो चीफ राजदेव रंजन की दुस्साहसिक हत्या पर बिहार के मुख्य मंत्री नीतिश कुमार की प्रतिक्रिया कलमकारों को आश्वस्ति देती है। संभवतया यह पहला मामला है जब किसी पत्रकार की नृशंस हत्या की दुस्साहसिक वारदात को किसी मुख्य मंत्री ने सरकार पर हमला माना है। अब तक पत्रकारों पर हुए हमलों ,उनकी हत्या की घटनाओं के वर्क आउट और असली अपराधियों को चिन्हित्त कर उनके खिलाफ हुई कानून सम्मत कार्यवाही का ट्रैक रिकार्ड मात्र 4 प्रतिशत का है। समय समय पर पत्रकार संगठनों ने पत्रकार सुरक्षा क़ानून बनाने की मांग की जो व्यवस्था के नक्कारखाने में सुनी नहीं गई। ख़बरों की दुनिया से जुड़े राजदेव रंजन और ऐसे ही अंजाम भुगतने बाले पत्रकार एक अदद खबर बनते हैं। तात्कालिक प्रतिक्रियाओं के बाद स्थिति फिर बैतलवा डाल पर की हो जाती है।
उम्मीद की जानी चाहिए की राजदेव रंजन की दुस्साहसिक हत्या का सच सामने आएगा और असली अपराधी पकडे जाएंगे और उन्हें उनके अंजाम तक पहुँचाया जाएगा।

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