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कहने को भारतीय संविधान ने जिस लोकतांत्रिक व्यवस्था को अंगीकृत किया वह जनता का जनता के द्वारा जनता के लिए है। यथार्थ के धरातल पर इस देश का आम आदमी अपने नुमाईंदों एवं नौकरशाहों की दुरभि संधि की चक्की में पिसा जा रहा है। इनका आचरण ,इनकी मानसिकता ,इनका चरित्र आम आदमी को अपनी रियाया मानने जैसा ही है। भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे आम आदमी के कथित नुमाईंदों एवं नौकरशाहों के चरित्र और मानसिकता को समझने के लिए नजीर के तौर पर 16 जुलाई 016 को उत्तम प्रदेश के एक युवा की ह्रदय विदारक मौत से जुड़े घटनाक्रम को समझना होगा।
नौकरशाही की कार्यप्रणाली से आजिज गाजीपुर के नंदगंज क्षेत्र का युवक सत्येंद्र उत्तम प्रदेश के काबीना मंत्री शिवपाल यादव को अपनी व्यथा सुनाना चाहता था। सत्येंद्र गंवई राजनीति का शिकार था। गाँव के प्रधान तथा कोटेदार ने साजिशन उसे छेड़खानी के फर्जी मुक़दमे में फंसा दिया था। उसने तहसील दिवस से लगायत हर अधिकारी से न्याय की गुहार लगाई जो नक्कारखाने में तूती की आवाज की तरह बेअसर रही। हताश और निराश सत्येन्द्र 12 जुलाई 016 को टाउन नेशनल इंटर कालेज में काबीना मंत्री शिवपाल यादव की जनसभा में पहुँच गया। यह युवक उत्तम प्रदेश की बेलगाम नौकरशाही की करतूत काबीना मंत्री शिवपाल यादव को बताना चाहता था। फर्जी मुक़दमे से सामाजिक संत्रास झेलता यह युवक इस संकल्प के साथ शिवपाल यादव की सभा में पहुंचा था की यदि उसकी फरियाद शिवपाल यादव भी नहीं सुनेंगे तब भरी सभा में वह अपनी जीवन लीला का पटाक्षेप कर देगा। सत्येंद्र अपने साथ किरासिन तेल और माचिस लेकर पहुंचा था।
सत्येन्द्र मंच की तरफ जाने लगा तब सुरक्षा तंत्र ने उसे रोका। एक युवक अपनी फरियाद सुनाना चाहता है जिसे सुरक्षा व्यवस्था में लगा संवेदन शून्य तंत्र रोक रहा है यह शिवपाल यादव सहित मंच पर मौजूद आम आदमी के कथित नुमाइंदे मूक दर्शक बने देखते रहे। जनता के तथाकथित नुमाइंदों की मौजूदगी में इस युवक ने खुद को आग के हबाले कर दिया। देखते देखते आग के शोलों ने उसे अपनी चपेट में ले लिया। यह ह्रदय विदारक घटना जनता के तथाकथित नुमाइंदों ,नौकरशाहों और सभा में मौजूद इस लोकतंत्र की धूरी जनता जनार्दन के लिए एक अदद व्यतिक्रम ,एक कमर्शियल ब्रेक से ज्यादा असर न छोड सकी । क्षणिक अफरा -तफरी के बाद शिवपाल की जन सभा जारी रही।
गम्भीर रूप से जले इस युवक की वाराणसी के एक निजी नर्सिंग होम में दर्दनाक मौत हो गई। व्यवस्था से आजिज आम आदमी द्वारा ऐसे आत्मघाती कदम उठाने की यह न तो पहली घटना थी न ही आखिरी। लोकतंत्र का आम आदमी ऐसे संत्रास झेलने को अभिशप्त है। संदर्भित घटना में जनता के तथाकथित नुमाइंदों ,नौकरशाहों के साथ ही सभा में मौजूद आम आदमी की भूमिका किसी भी संवेदनशील इंसान को झकझोरेगी।
अखिलेश यादव के कथित उत्तम प्रदेश का जमीनी सच यह है की कानून व्यवस्था लकवाग्रस्त स्थिति में है और नौकरशाही बेलगाम। जमीनी सच सुनने की फुर्सत न तो अखिलेश यादव को है न ही धरती पुत्र सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव को। उनका ध्यान येन केन प्रकारेण अपनी सत्ता कायम रखने पर है। इस लोकतान्त्रिक व्यवस्था में आम आदमी की हैसियत भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे खाकी ,खादी और नौकरशाहों की नजर में कमोवेश वैसी ही है जैसी राजशाही के दौर में ,सामंतशाही के दौर में हुआ करती थी। जनता को न्याय देने ,उसकी समस्याओं का समाधान करने के दावों के साथ शुरू तहसील दिवस ,थाना दिवस ,समाधान दिवस नौकरशाहों का राजदरबार बन गया है। जहाँ बैठ कर ये नौकरशाह प्रजा की फरियाद सुनते हैं ।फरियाद कबूल करना न करना इन नौकरशाहों की मर्जी पर निर्भर है। सत्येंद्र प्रकरण इस जमीनी सच का ज्वलंत उदाहरण है। जिस कोटेदार और प्रधान पर सत्येन्द्र को छेड़खानी के फर्जी मुक़दमे में फंसाने का आरोप है उसे आपूर्ति विभाग के भ्रष्ट तंत्र का संरक्षण प्राप्त था। उस पर वितरण में धांधली करने तथा कालाबाजारी का आरोप था। सत्येंद्र ने तहसील दिवस में शिकायत की थी। ग्रामीणों ने कोटेदार के खिलाफ धरना प्रदर्शन तक किया।भ्रष्ट तंत्र ने कोटेदार को क्लीन चिट दे दी। कोटेदार ने सत्येंद्र को सबक सिखाने के लिए उसे फर्जी मुक़दमे में फंसा दिया। वह न्याय की गुहार लगाता रहा। शिवपाल यादव को अपनी व्यथा सुनाना चाहता था। विफल होने पर उसने आत्मदाह किया और जिंदगी की जंग हार गया। सबाल अनुत्तरित है आम आदमी कब तक बेलगाम नौकरशाहों और जनता के नुमाइंदों की दुरभि संधि का शिकार होता रहेगा ?
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