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पुत्र मोह में फंसे धृतराष्ट्र ने महाभारत की जमीन तैयार की और कौरवी कुनबे का सर्वनाश किया था। कमोबेश वैसी ही पटकथा उत्तर प्रदेश के मुलायमी कुनबे के महाभारत की है। इस महाभारत की पटकथा 2012 में सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने लिखी थी जब पुत्र मोह में मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश को 2012 के चुनावी समर का सेनापति नियुक्त किया था । युवा और ऊर्जावान अखिलेश यादव ने खुद को एक सफल और सक्षम सेनापति सिद्ध किया।
मुलायमी कुनबे में छिड़ी यह सियासी जंग देखने में भले ही चाचा शिवपाल यादव और भतीजे अखिलेश यादव के बीच कतिपय मतभेदों की कोख से उपजी नजर आये परंतु यह जंग मुलायम सिंह यादव की सरपरस्ती में समाजवादी पार्टी को परिवार परस्त पार्टी में तब्दील किये जाने की वजह से छिड़ी जंग है। चाचा -भतीजे के बीच मतभेद ,या ईगो की टकराहट इस जंग की एक अदद वजह हो सकती है मुकम्मल सच नहीं । इसकी असली वजह है सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव की विरासत पर काबिज होना । मुलायमी कुनबे की इस जंग में सपा सुप्रीमो ने सीज फायर का फरमान जारी कर दिया परंतु यथार्थ के धरातल पर मुलायमी फरमान का असर होता दिखता नहीं है। चाचा शिवपाल और भतीजे अखिलेश के समर्थको की लामबंदी ,नारेबाजी ,प्रदर्शन का दौर जारी है।
मुलायम ,अखिलेश और शिवपाल मीडिया के माध्यम से यह बताते हैं कि सब कुछ ठीक है। समाजवादी परिवार वैसा ही है जैसा था परंतु मुलायमी कुनबे में महाभारत जारी है। दोनों खेमे हम साथ साथ हैं का राग अलापते हैं परंतु शह और मात का खेल जारी है। कहने की जरुरत नहीं की मुलायमी कुनबे और समाजवादी परिवार का जमीनी सच वह नहीं है जो सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ,उनके पुत्र अखिलेश यादव ,और चाचा शिवपाल बता रहे हैं।मुलायमी फरमान की हनक की पोल पट्टी भी इस महाभारत में खुलती नजर आई।
इस महाभारत को सियासी जगत ने शुरुवाती दौर में 2017 के चुनाव से पहले अखिलेश की छवि चमकाने की सियासी कवायद बताया ,भाजपा और बसपा ने इसे सपा की सियासी नौटंकी बताया परंतु इस महाभारत में पल -पल बदलते परिदृश्य से यह साफ हुआ की यह महाभारत मुलायम की विरासत पर काबिज होने के दूरगामी इरादों से प्रेरित है।
हानि लाभ की दृष्टि से इस महाभारत में सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ,उनके पुत्र अखिलेश यादव ,समाजवादी पार्टी को भारी हानि हुई है और शिवपाल यादव फायदे में रहे। शिवपाल भ्रष्टाचार के आरोपी मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति की वापसी कराने ,खुद के विभागों को (लोक निर्माण को छोड़ कर ) हथियाने में कामयाब रहे। इतना ही नहीं शिवपाल की प्रेशर पॉलिटिक्स ने अखिलेश -रामगोपाल -आजम के त्रिगुट पर सियासी बढ़त ले ली। सपा सुप्रीमो ने शिवपाल यादव के सामने घुटने टेकते हुए शिवपाल को उत्तर प्रदेश की सांगठनिक कमान सौंप दी वहीँ बकौल अखिलेश ‘ बाहरी ‘ तत्व अमर सिंह को सपा का राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त कर अखिलेश की स्थिति हास्यास्पद बना डाली। गौर तलब है की अखिलेश ने बहुत मजबूती के साथ मीडिया से कहा था की उनकी नेताजी से और चाचा बात हुई है अब सब ठीक है कहीं कोई मतभेद नहीं है ,हम दोनों मिल कर बाहर के आदमी को बाहर करेंगे। प्रदेश सपा अध्यक्ष बनने के बाद शिवपाल यादव ने रामगोपाल और अखिलेश समर्थकों को संगठन से निकालने का अभियान चला रखा है। निष्कासन और पार्टी से इस्तीफों का दौर जारी है।
अखिलेश की क्षति विपक्षी दलों ने नहीं खुद सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने समय समय पर अखिलेश सरकार के काम काज ,अखिलेश मंत्रिमंडल के मंत्रियों पर भ्रष्टाचार ,जमीनों पर कब्ज़ा करने के गंभीर आरोप लगाकर की है।
मुलायमी कुनबे के हालिया महाभारत ने विपक्षी दलों के उस आरोप को मुहरबंद किया जिसमे कहा जाता रहा है की सूबे में चार -साढ़े चार मुख्य मंत्री हैं। अभी भी अखिलेश पितृ मोह और सत्ता मोह से मुक्त होकर मुख्य मंत्री के पद से इस्तीफा देकर अपनी छवि को हुए नुकसान की भरपाई कर सकते हैं जिसकी कोई सम्भावना नजर नहीं आती। इस महाभारत ने अखिलेश को एक बेचारा और लाचार मुख्य मंत्री साबित किया है। कदाचित अखिलेश पर पहचान का यह ठप्पा उनके पितृ मोह की वजह से लगा है। जो हालात हैं उनमे सपा दो खेमों में बंटी नजर आती है। यह तय है की इस खेमेबंदी का खामियाजा सपा को आगामी विधान सभा चुनाव में भुगतना होगा।
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