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लोकतंत्र के सन्दर्भ में यह तल्ख़ राय 2014 के आम चुनाव के बाद काफी हद तक सही सिद्ध हो रही है कि मूर्खों पर धूर्तों का शासन है लोकतंत्र। जमीर बेच चुकी मीडिया ,चन्द चुनिंदा कारपोरेट घरानों और भगवा राजनीती के धूर्त गठजोड़ ने 2014 के चुनाव में जो सपने इस देश के आम आदमी को ,इस देश के नौजवानों को बेचे उनकी हकीकत जगजाहिर है। बेहयाई की पराकाष्ठा भी देश ने देखी जब 2014 की चुनावी मंडी में बेचे गए सपनों को खुद भगवा दल के नायक ने जुमला कहा।
2014 की चुनावी मंडी में भगवा सौदागरों ने जो सपने बेचे उन्हीं सपनो में विदेशों में जमा काला धन वापस लाने और लोगों के खाते में 15 लाख रुपये देने का सपना भी था। विदेशों में जमा काला धन वापस लाने की दिशा में मोदी सरकार की भूमिका ने यही सन्देश दिया की विदेशों में जमा काला धन वापस लाने का दावा भी चुनावी जुमला ही था । याद कीजिये चुनावी रैलियों में मोदी जी ने कहा था की यदि विदेशों में जमा काला धन न लाएं तो हमें फांसी पर लटका देना। ठीक उसी तर्ज पर जनता को इमोशनल ब्लैकमेल करने के लिए नोट बंदी के मामले में उन्होंने यह कहना शुरू किया है की यदि 50 दिन के भीतर जैसा होना चाहिए वैसा देश न बना दें तो चौराहे पर उन्हें जो सजा देना चाहे दे। शब्दों के बाजीगर यहीं नहीं रुके उन्होंने यहाँ तक कह डाला की उनको वो बर्बाद कर देंगे,मार देंगे। पर यह नहीं बताया की 50 दिन बाद वो कैसा देश देने बाले हैं ? और वो कौन हैं जो 56 इन्ची सीना धारी को बर्बाद कर देंगे ,मार डालेंगे ? मोदी जी ने यह फ़रमाया की जो घोटालेबाज हैं ,जिमके पास काला धन है वो आज लाईन में खड़े हैं। कहने की जरुरत नहीं की आज बैंकों ,डाक घरों ,एटीएम की लाईनों में कौन लोग खड़े हैं ? मोदी जी का बयान काला धन के मामले में उनकी सोंच ,उनकी गंभीरता उनके दृष्टिकोण की मुनादी करता है।
दरअसल उत्तर प्रदेश विधान सभा की चुनावी वैतरणी पार करने के लिए सर्जिकल स्ट्राईक की नाव पर सबार भाजपा को यह भली भांति पता है कि इस नाव के भरोसे चुनावी वैतरणी पार होना संभव नहीं है। गौर तलब है की सर्जिकल स्ट्राईक के बाद पाकिस्तानी गोलाबारी में आये दिन सीमा पर हमारे सैनिक मारे जा रहे हैं । सीमा की सुरक्षा के मामले में इस सरकार का घटिया परफार्मेंस किसी से छिपा नहीं है।
यही वजह है की
आनन फानन 500 और 1000 के नोट बंद करने का अपरिपक्व फैसला लिया गया और इसे भ्रष्टाचार ,नक्सल हिंसा ,आतंकबाद ,जाली नोटों के व्यापार तथा काला धन के खिलाफ मोदी सरकार की सर्जिकल स्ट्राईक प्रचारित किया जा रहा है। लगभग ढाई वर्ष तक कुम्भकर्णी निद्रा में लीन मोदी सरकार ने नोट बंदी की सर्जिकल स्ट्राईक के लिए जो वक्त चुना वह उसकी नीति और नियत दोनों पर सबालिया निशान लगाते हैं।
500 और 1000 के नोट बंद करने के फैसले के साथ नत्थी 2000 के नोट की लांचिंग कम से कम काला धन के मामले में मोदी सरकार के दावों को हास्यास्पद बनाता है।
इस तुगलकी फरमान से यदि कोई अप्रभावित है तो वह है धन कुबेर तबका। धनकुबेरों के धन का सिर्फ रंग बदल गया काला धन पीला धन में तब्दील कर लिया गया। मध्यम वर्ग ,मजदूर वर्ग को किन दुश्वारियों का सामना करना पड़ रहा है किसी से छुपा नहीं है। बैंकों ,डाक घरों ,एटीएम से जिस वैकल्पिक व्यवस्था के दावे किये गए थे वो ढपोरशंखी सिद्ध हुए,सारे दावे औंधे मुंह गिरे हांफ रहे हैं । अब वित्त मंत्री अरुण जेटली यह कह रहे हैं की एटीएम से धन निकासी की व्यवस्था में तीन चार हफ्ते लगेंगे। वित्त मंत्री के बयान से यह साफ़ हो जाता है की बिना होम वर्क किये इस सरकार ने एक तुगलकी फरमान जारी कर आम आदमी का जीना दूभर कर दिया।
जहाँ तक काला धन का सबाल है अर्थ शास्त्रियों का मत है की नोटों की शक्ल में काला धन महज छह सात प्रतिशत ही है। यूपीए सरकार ने भी नोट बंदी के फैसले लिए ,उन पर अमल भी किया परंतु उससे आम आदमी को लेश मात्र भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा।
संभवतया यह पहला अवसर है की किसी सरकार ने मौद्रिक परिवर्तन को लेकर इतना अपरिपक्व फैसला लिया जिससे देश में ऐसी अफरा -तफरी का माहौल है । आम आदमी को इतनी दुश्वारियों का सामना करना पड़ा है। बैंकों में 9 नवम्बर से लग रही लंबी कतारें ,अधिकांश एटीएम पर लटकते ताले सरकारी दावों की पोल खोल रहे हैं । अब तो लोगों का धैर्य जबाब देने लगा है और जगह जगह लोगों को अपने ही पैसों के लिए पुलिसिया बदसलूकी ,पुलिसिया लाठी खानी पड़ रही है। जो हालात मोदी सरकार द्वारा पैदा किये गए हैं वो एक अघोषित आर्थिक आपात काल जैसे हैं जिसकी चपेट में आने से यदि कोई बचा है तो वह धनकुबेर तबका ही है। इस अघोषित आर्थिक आपात काल ने अब तक दर्जनों नागरिकों की जीवन लीला समाप्त कर दी है ,खाते में या पास में पर्याप्त धनराशि होने के वावजूद इस तुगलकी फरमान की वजह से दवा-ईलाज के अभाव में मरीजों की मौत का सिलसिला शुरू है। जिन घरों में शादियां हैं वहां तनाव का माहौल है। इसमें कहीं भी संशय की गुंजाइश नहीं है की यह फैसला तुगलकी फैसला है ,बिना होम वर्क किये लिया गया गैर जिमेवाराना फैसला है ,अपरिपक्व फैसला है। मोदी जी और वित्त मंत्री अरुण जेटली का यह कहना की यह फैसला दस महीने की नितांत गोपनीय तैयारी के बाद लिया गया फैसला है गले के नीचे नहीं उतरता। 2000 के नोट प्रचलन में आने की बात तो गुजरात और यूपी के कुछ खास अख़बारों में अप्रैल 016 में ही छपी थी।गोपनीयता का हाल यह है की दोहजारी नोट का जुड़वाँ भाई दौड़ने भी लगा जबकि असली दो हजारी का अभी(कुछ किस्मत के धनियों को छोड ) देशवासियों ने ढंग से दर्शन तक नहीं किया है।
यदि दस महीने के कथित होम वर्क के बाद मोदी सरकार ने यह फैसला लिया है तब यह मान लिया जाना चाहिए की आम आदमी जिन दुश्वारियों को झेल रहा है वह इस सरकार ने जानबूझ कर जनता के मत्थे थोपी है।
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