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आज मैं आपको पुखराया में हुई ह्रदय विदारक रेल दुर्घटना के सन्दर्भ में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी देना चाहता हूँ। अधिकांश रेल दुर्घटनाओं की मूल वजह होती है अधिकारियों की नादिरशाही ,रेल संरक्षा नियमों से आपराधिक खिलवाड़ ,इंफ्रास्ट्रक्चर की अनदेखी। मैंने उत्तर मध्य रेलवे के इलाहाबाद डिवीजन के अहरौरा रोड रेलवे स्टेशन पर 04 अक्टूबर 2002 को हुई एक भीषण रेल दुर्घटना (इस दुर्घटना की भयावहता का अनुमान आप इस बात से लगा सकते हैं की दिल्ली -हावड़ा रेल मार्ग पर 56 घंटे तक अप और डाउन लाईन पर रेल परिचालन ठप्प रहा।) की गहन पड़ताल की थी । इस दुर्घटना की पड़ताल में मुझे पता चला की डाउन बीडीसी गुड्स ट्रेन में मानक के विपरीत गार्ड ब्रेकवान लगा था और इसका गहन तकनीकी परीक्षण ड्यू था। कानपुर में टीएक्सआर ने मेमो देकर यह बात रेल अधिकारियों को बताई थी। यहाँ बताना जरूरी है की रेलवे बोर्ड दैनिक फोरकास्टिंग करता है की आज कितनी गाड़ियां चलानी हैं। रेल अधिकारियों द्वारा अपने डिवीजन से ज्यादा गाड़ियां चलाने का श्रेय लूटने के लिए रेल संरक्षा से किस तरह आपराधिक खिलवाड़ किया जाता है इसका अनुमान अहरौरा रोड रेलवे स्टेशन पर 04 अक्टूबर 2002 को हुई भीषण रेल दुर्घटना से लगाया जा सकता है। जिस मालगाड़ी में मानक के विपरीत गार्ड ब्रेकवान लगा था ,जिसका गहन तकनीकी परीक्षण ड्यू था वो बिना किसी तकनीकी परीक्षण के रेल की पटरियों पर दौड़ती रही। दिल्ली डिवीजन ने भी इसकी अनदेखी की और इलाहाबाद डिवीजन में तो लिखित मेमो देने के वावजूद तकनीकी परीक्षण नहीं कराया गया और उसे रेल की पटरियों पर दौड़ने दिया गया। संयोग अच्छा था की अहरौरा रोड स्टेशन पर डाउन बीडीसी गुड्स ट्रेन अप ट्रैक से गुजरती पानीपत गुड्स ट्रेन पर पलटी। इस दुर्घटना में अनुमानित 100 करोड़ की आर्थिक क्षति हुई ,अप गुड्स ट्रेन का चालक और एक लोकल नागरिक मारा गया। कल्पना कीजिये यदि यह डाउन गुड्स ट्रेन किसी मेल /एक्सप्रेस ट्रेन पर पलटी होती तो क्या होता ?
एक जिम्मेवार नागरिक और पत्रकार होने के नाते मैंने गहन तकनीकी परीक्षण के लिए दिए गए मेमो और दुर्घटना की जांच रिपोर्ट हासिल की । ( जांच रिपोर्ट के पैरा 5 में कहा गया है की-01 डाउन बीडीसी गुड्स ट्रेन में मानक के विपरीत गार्ड ब्रेक वान लगा है। 02 -इस गाड़ी का गहन तकनीकी परीक्षण ड्यू था और दिल्ली डिवीजन से यह बिना तकनीकी परीक्षण के गुजरती रही। 03 -कानपुर में मेमो दिए जाने के बाद भी तकनीकी परीक्षण नहीं कराया गया। यह जांच रिपोर्ट हमें बताती है की रेलवे के आला अधिकारियों द्वारा रेल संरक्षा की अनदेखी ही नहीं की जाती रेल यात्रियों के जान माल और सुरक्षित यात्रा के सबाल पर रेलवे के आला अधिकारियों और रेल मंत्रालय का रवैय्या रेल संरक्षा से आपराधिक खिलवाड़ करने का होता है) जांच रिपोर्ट और तकनीकी परीक्षण के लिए दिए गए मेमो के साथ मैंने मंडल रेल प्रबंधक ,महाप्रबंधक उत्तर मध्य रेलवे इलाहबाद ,चेयरमैन रेलवे बोर्ड ,रेल संरक्षा आयुक्त ,रेल मंत्री को ज्ञापन भेज कर दुर्घटना की जिम्मेवारी तय करते हुए कार्यवाई का अनुरोध किया पर कोई कार्यवाई न हुई। आपको हैरानी होगी की प्रधान मंत्री तथा राष्ट्रपति महोदय ने चेयरमैन रेलवे बोर्ड तथा सचिव रेल मंत्रालय को मेरे ज्ञापन पर कार्यवाई के लिए निर्देशित किया फिर भी कार्यवाई न की गई। प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने 10 मार्च 2008 को इस सन्दर्भ में प्रेषित मेरे पत्र का संज्ञान लेते हुए सचिव रेलवे बोर्ड को कार्यवाई करने का निर्देश दिया फिर भी कार्यवाई न की गई। मैंने प्रधान मंत्री श्री मनमोहन सिंह को अवगत कराया की उनके निर्देश के वावजूद कार्यवाई नहीं की गई तब उन्होंने 01 जुलाई 2008 को सचिव रेलवे बोर्ड को कार्यवाई करने का निर्देश देते हुए रिमाइंडर भेजा परंतु परिणाम वही ढाक के तीन पात। 13जून 2008 को राष्ट्रपति महोदय ने भी इस अति गंभीर प्रकरण का संज्ञान लेते हुए सचिव रेल मंत्रालय को कार्यवाई के निर्देश दिए परिणाम वही ढाक के तीन पात। मेरे अनुरोध पर राष्ट्रपति महोदय ने भी इस अति गंभीर प्रकरण में कार्यवाई हेतु रिमाइंडर भेजा। आज भी रेल अधिकारियों द्वारा जानबूझ कर कराइ गई भीषण रेल दुर्घटना की फ़ाइल दफ़न है।
मोदी सरकार के रेल मंत्री सुरेश प्रभु जी के बारे में आये दिन सुनता पढता था की वह ट्विट पर मिली शिकायतों का संज्ञान लेते हैं। मैंने उम्मीद की थी की सुरेश प्रभु जैसे जागरूक रेल मंत्री को जरूर इस मामले का संज्ञान लेना चाहिए। मैंने पहले ट्विट कर सन्दर्भ बताया ,जब दूसरे दिन 25 अप्रैल 016 को रेल मंत्रालय से मुझे फोन आया तो मैंने रेलमंत्री जी से बात कराने का अनुरोध किया । मुझे उनकी ईमेल आईडी देकर कहा गया की मेल करो। मैंने सारे दस्तावेजी सबूतों के साथ 25 अप्रैल 016 को मेल किया पर सुरेश प्रभु भी 2002 से 2014 के काल खंड में रहे रेलमंत्रियों के ही नक़्शे कदम पर चलने बाले रेल मंत्री निकले।
आपको बता दें की एनडीए सरकार ने रेल यात्रियों से संरक्षा अधिभार बसूलने का फैसला लिया और कहा था की रेल यात्रा सुरक्षित हो इसलिए यह कदम उठाया गया है।
तल्ख़ हकीकत यह है की भारतीय रेल भगवान् भरोसे चल रही है। दुर्भाग्य यह है की जर्जर इंफ्रास्ट्रक्चर की हमारे अति विद्वान प्रधान मंत्री को परवाह नहीं । रेलवे मंत्रालय ने गत वर्ष यह आकलन किया था की तक़रीबन 4500 किलोमीटर रेलवे ट्रैक जर्जर हाल में है ,पटरियों को बदलने की जरुरत है। इस आकलन रिपोर्ट को वित्तीय कमी की आड़ में ठन्डे बस्ते के हबाले कर दिया गया क्योंकि हाईटेक प्रधान मंत्री की बुलेट ट्रेन की सनक को अमली जामा पहनाना जरूरी समझा गया। प्रधान मंत्री को बुलेट ट्रेन की सनक है तो सुरेश प्रभु को ट्विटर पर सुर्खियां बटोरनी हैं ,जो महिला यात्री के रोते बच्चे को दूध भिजवा कर बटोर रहे हैं । ऐसी स्थिति में देश कैसे भरोसा करे की पुखराया का सच सामने आएगा और दोषी दण्डित होंगे। रेलवे के आला अधिकारियों द्वारा रेल संरक्षा की अनदेखी ही नहीं की जाती रेल यात्रियों के जान माल और सुरक्षित यात्रा के सबाल पर रेलवे के आला अधिकारियों और रेल मंत्रालय का रवैय्या रेल संरक्षा से आपराधिक खिलवाड़ करने का होता है। इसी आपराधिक खिलवाड़ का नतीजा है इंदौर पटना एक्सप्रेस का ह्रदय विदारक हादसा।
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