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चुनाव आयोग की अग्नि परीक्षा

sach ke liye sach ke sath
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पांच राज्यों की विधान सभा के चुनाव की तिथियाँ चुनाव आयोग ने घोषित कर दी हैं। पारंपरिक तरीके से आदर्श चुनाव आचार संहिता भी लागू होगी । चुनावी इतिहास को देखें तो राजनैतिक पार्टियाँ अपने अपने तरीके से आदर्श चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करने के चोर दरबाजे तलाश लेती हैं। इन चोर दरवाजों की निगरानी ,हिंसा मुक्त मतदान ,धन बल ,बाहुबल को लगाम देने जैसी तमाम चुनौतियाँ चुनाव आयोग के सामने होंगी जो उनकी अग्नि परीक्षा लेंगी ।
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लोकतंत्र का दुर्भाग्य है कि चुनाव में धन बल ,बाहुबल का वर्चस्व “मर्ज बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा
की ” कि लोकोक्ति को चरितार्थ करता रहा है। दागी उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित करने का मामला उनके विरुद्ध आपराधिक मामलों के लंबित होने की बात कहकर टाला जाता रहा है। नतीजतन तमाम संगीन अपराधों के आरोपी चुनाव लड़ते हैं और चुनाव जीत कर “माननीय” बन जाते हैं। संगीन अपराधों के आरोपियों को टिकट देने के खेल में सभी पार्टियाँ शामिल होती हैं। टिकट देना राजनैतिक दलों की सियासी मजबूरी हो सकती है ,उनकी सियासी रणनीति हो सकती है परन्तु हम मतदाता भी इस राजनैतिक कोढ़ को पालते पोसते रहे हैं। सियासी सौदागरों ने अपराधियों ,माफियाओं को टिकट देने का अपराध किया है तो हम मतदाताओं ने उनको जीता कर इस अपराध को बढ़ावा देने का अपराध किया है।जिस दिन मतदाता ऐसे अवांछित तत्वों को नकारना शुरू करेगा सियासी सौदागर इनको टिकट देना बंद करेंगे ।दुर्भाग्यवश राजनीति के अपराधीकरण को खाद पानी देने का अपराध जाने अनजाने हम सब करते रहे हैं ।
याद कीजिये २०१४ के लोकसभा चुनाव के बाद मौजूदा प्रधान मंत्री का संसद की सीढियों पर मत्था टेक नाटक और सदन में दिया गया भाषण, जिसमे उन्होंने कहा था कि शपथ ग्रहण के बाद लोकतंत्र के पवित्र मंदिर को दागी सांसदों से मुक्त करना उनका पहला काम होगा। कथनी के धरातल पर हुआ इसके उलट भाजपा में शताधिक दागी सांसदों की फ़ौज बनी हुई है जिनमे से कुछ मोदी मंत्रिमंडल के सदस्य भी हैं । आज खुद मोदी की सियासी चुनरी में सहारा समूह और बिडला से बहैसियत मुख्य मंत्री गुजरात रिश्वत लेने सहित तमाम दाग नजर आ रहे जिसे भगवा पलटन “ मोदी जी गंगा जैसे पवित्र हैं “ का राग अलाप कर धोने की कोशिस कर रही है । इस सियासी कोढ़ से निजात पाने के लिए हमारे पास दो ही रास्ते हैं ।पहला यह कि चुनाव आयोग ऐसे प्रतिबंधात्मक नियम लागु करे की जब तक अदालत निर्दोष सिद्ध न कर दे कोई भी दागी चुनाव नहीं लड़ सकता है । दूसरा रास्ता है मतदाताओं में जागरूकता का ,मतदाता दागियों को ,दागियों को टिकट देने बाले दलों को अपनी मतदान की ताकत से नकारना शुरू करे।
चुनाव में धन बल के बढ़ते वर्चस्व को लगाम देना चुनाव आयोग के लिए एक कठिन चुनौती रही है । पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव में इस मोर्चे पर भी चुनाव आयोग की अग्नि परीक्षा होनी है।उसे यह सुनिश्चित करना होगा की प्रधान मंत्री ने अपनी हालिया रैलियों में मतदान को प्रभावित करने की मंशा से समाज के विभिन्न तबकों के खातों में धन भेजने की जो घोषणाएँ की हैं उन पर सख्ती से रोक लगाये और इसकी सतत निगरानी भी करे ।
निष्पक्ष मतदान के लिए चुनाव आयोग को मीडिया के दुरूपयोग की रोकथाम के मोर्चे पर भी एक कठिन अग्नि परीक्षा देनी है । धन बल से मीडिया के दुरूपयोग को लगाम देने की भी अग्नि परीक्षा चुनाव को देनी है। जिसमे २०१४ के लोक सभा चुनाव में वह पूर्णतया फ्लाप सिद्ध हुआ। मतदान बाले दिन भी भाजपा की रैलियों का सीधा प्रसारण होता रहा ,खबरिया चैनलों के कारकून मतदान के लिए कतारबद्ध लोगों को भाजपा के पक्ष में मतदान के लिए प्रेरित करने का बेशर्म प्रदर्शन करते रहे ।
सुप्रीम कोर्ट के उस हालिया फैसले पर सख्ती से अमल सुनिश्चित करना भी चुनाव आयोग के लिए एक कड़ी चुनौती होगी जिसमे कहा गया है कि वोट मांगने के लिए जाति और धर्म का प्रयोग नहीं किया जा सकता । सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश की सबसे ज्यादा धज्जियाँ उत्तर प्रदेश में उडनी तय है। चुनाव आयोग को देखना होगा की सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश की अवहेलना न हो ।
चुनाव प्रक्रिया संपन्न होने के बाद ही यह तय होगा की चुनाव आयोग निष्पक्ष मतदान सुनिश्चित करा पाने की अग्नि परीक्षा में सफल होता है या अपनी छवि एक नख दन्त विहीन संस्था जैसी प्रस्तुत करता है ।

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