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राजनीति के अपराधीकरण के सबाल पर एक लम्बे समय से बहस होती रही है परन्तु हमारी लोकतान्त्रिक व्यवस्था ,हमारे लोकतंत्र की अस्मिता से जुडी यह बहस बेनतीजा रही है । सुप्रीम कोर्ट में २०११ में पूर्व चुनाव आयुक्त जे एम लिंगदोह ने भी याचिका दाखिल की थी । यदि किसी व्यक्ति पर आपराधिक मामले में आरोप तय हो जाते हैं तब उसे चुनाव में भाग लेने से से रोका जाना चाहिए या नहीं ? इस सन्दर्भ में विधि आयोग चुनाव आयोग समेत कई आयोग द्वारा दी गई रिपोर्ट ठन्डे बसते में कैद हैं
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इस सन्दर्भ में भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने भी एक याचिका दाखिल कर कहा था की ३३ फीसदी सांसद और विधायकों पर गंभीर आपराधिक आरोप हैं। याचिका में कहा गया था की ८ मार्च २०१६ को सुप्रीम कोर्ट ने मामले को संविधान पीठ को भेजा था।लेकिन अब तक संविधान पीठ गठन नहीं हो सका है ।
सुप्रीम कोर्ट के नव नियुक्त मुख्य न्यायाधीश श्री जे.एस .खेहर ने इस याचिका के सन्दर्भ में कहा है कि जल्द ही इस पर पांच जजों की संविधान पीठ का गठन किया जाएगा। अगले चुनाव से पहले सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अपना फैसला देगा कि ऐसे लोगों पर रोक लगे या नहीं।
यह एक सुखद संयोग है की इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने एक सकारात्मक संकेत दिए हैं और पांच जजों की संविधान पीठ का गठन कर इस अति महत्वपूर्ण मामले में निर्णय की बात कही है ।राजनीति में दागियों की उत्तरोत्तर बढ़ते बर्चस्व पर प्रहार का यह सही वक्त हो सकता है क्योंकि पांच राज्यों में विधान सभा के चुनाव होने जा रहे हैं ।राजनैतिक शुचिता के सबाल पर राजनैतिक दलों द्वारा बातें तो की जाती हैं परन्तु उनकी मंशा स्पष्ट नहीं है। राजनैतिक शुचिता की सबसे बड़ी पैरोकार भाजपा की भी कथनी और करनी में ३६का आंकड़ा है ।राजनैतिक शुचिता उसके लिए महज जुबानी पैतरेबाजी का विषय है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित संविधान पीठ द्वारा इस सन्दर्भ में आने वाला फैसला राजनीति के अपराधीकरण के सबाल पर राजनेताओं ,राजनैतिक दलों की कथनी और करनी के भेद को उजागर करेगा । उम्मीद की जानी चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट शीर्ष प्राथमिकता पर इस मामले में सार्थक ,सकारात्मक फैसला देगा जो वाध्य्कारी हो , जिस पर विधायिका और न्यायपालिका में विवाद की कोई गुंजाइश न हो ।
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