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चुनाव आयोग तक पहुंची सपा की रार का जो नतीजा आज सामने आया है वह कत्तई अप्रत्याशित नहीं है .मैंने २ जनवरी २०१७ को अपने ब्लॉग -सियासी घमासान में धरती पर धरती पुत्र में इस सम्भावना की चर्चा की थी .अब जबकि चुनाव आयोग ने अखिलेश यादव को सपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष मानते हुए साईकिल चुनाव चिन्ह की उनकी दावेदारी को सही मानते हुए अपना फैसला सुना दिया है तब मुलायम सिंह यादव के सामने बहुत सीमित विकल्प बचे हैं .जिद्द पर अड़े रह कर अपनी फजीहत कराने या वक्त के फैसले को ,जमीनी सच्चाई को स्वीकार करते हुए सपा में अखिलेश युग का स्वागत करने में से कोई एक राह धरती पुत्र को स्वीकार करनी होगी .
मुलायमी कुनबे की महाभारत के हर चरण में ‘ जिसका नाम मुलायम है उसका जलवा कायम है ‘ का नारा अप्रासंगिक होता रहा .१ जनवरी २०१७ को कभी मुलायम के चाणक्य रहे प्रोफ़ेसर राम गोपाल यादव ने धरती पुत्र से युद्ध के संकेत जरूर दिए जब अखिलेश यादव को सपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने ,अमर सिंह को पार्टी से निकालने ,शिवपाल यादव को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने का प्रस्ताव सपा के खुले अधिवेशन में पास कराया परंतु युद्ध को टालने के दरवाजे खुले रखने की नियत से ही शिवपाल यादव को सिर्फ प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया गया और मुलायम सिंह यादव के लिए संरक्षक का सम्मान जनक पद सृजित किया गया .शांतिदूत की भूमिका में आजम खान के प्रयासों को मुलायम के सलाहकारों ने सफल नहीं होने दिया और पार्टी का झगडा चुनाव आयोग में जा पहुंचा .
चुनाव आयोग के फैसले से मुलायम की हार जरूर हुई है परन्तु चुनाव आयोग में मुलायम जैसे अनुभवी नेता ने जिस लचर तरीके से अपना पक्ष रखा वह चौंकाने बाला है .मुलायम ने चुनाव आयोग में अपेक्षित हलफनामे तक दाखिल नहीं किये थे ,उनका सारा जोर १ जनवरी २०१७ को प्रोफ़ेसर राम गोपाल यादव द्वारा आयोजित अधिवेशन की वैद्यता पर केंद्रित था अभी कहना जल्दबाजी होगी की मुलायम सच में हारे हैं या उन्होंने बहुत सधी सियासी चाल के तहत सपा की सियासी विरासत को लेकर शुरू हुए महाभारत में खुद के लिए सुनिश्चित हार और अखिलेश के लिए निष्कंटक राह चुनी .
हानि लाभ की दृष्टि से इस महाभारत में अखिलेश एक विजेता के रूप में उभर कर सामने आये हैं .आज की सपा का सच यही है की सपा में आज से अखिलेश युग की औपचारिक शुरुवात हो रही है .अखिलेश के सामने उत्तर प्रदेश के चुनाव में जीत दर्ज करने और मुलायम सिंह यादव को साधने की कठिन चुनौती है .अखिलेश यादव के पक्ष में आये चुनाव आयोग के फैसले के बाद उत्तर प्रदेश के चुनावी समीकरण भी तेजी से बदलेंगे .कांग्रेस ,रालोद सहित कुछ क्षेत्रीय पार्टियों से सपा के गठबंधन के बाद भाजपा और बसपा को उत्तर प्रदेश की चुनावी रणभूमि में कड़ी चुनौती मिलने जा रही है .
अखिलेश के साथ कुछ अपवादों को छोड़ दें तब पूरी सपा मजबूती के साथ खड़ी है .अखिलेश के साथ प्रदेश का युवा मतदाता और तटस्थ मतदाताओं का बड़ा तबका जुड़ सकता है जिसे यह लगने लगा है की पिता और चचा से मुक्ति हासिल करने के बाद अखिलेश स्वतंत्र रूप से अपनी पूरी ऊर्जा के साथ सूबे की तस्वीर और तकदीर बदल सकते हैं . इस चुनाव में जो अखिलेश चुनाव मैदान में होगा उसकी छवि दागियों के खिलाफ पिता तक से धर्मयुद्ध से न हिचकने बाले योद्धा की होगी .फ़िलहाल अखिलेश ने उत्तर प्रदेश के चुनाव में विरोधियों पर शुरुवाती बढ़त ले ली है .उम्मीद की जानी चाहिए की उनका सारा जोर इस बढ़त को कायम रखते हुए सत्ता में वापसी पर होगा .
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