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एटा में आज स्कूल बस की ह्रदय विदारक दुर्घटना में १३ बच्चों की दर्दनाक मृत्यु के गुनाहगारों की फेहरिश्त लंबी है.प्रथम दृष्टया स्कूल प्रबंधन की आपराधिक लापरवाही मानते हुए प्राथमिकी दर्ज कराई गई है .जबकि ऐसे हादसों के लिए हमारी मुकम्मल प्रशासनिक व्यवस्था गुनाहगार होती है .कमोवेश हम सब भी गुनाहगार हैं ,आत्म केन्द्रित सोंच ने हमारी सामजिक सोंच का दायरा इतना संकीर्ण कर दिया है कि हम नियमों की धज्जियाँ उड़ते देखते रहते हैं ,हादसे होते हैं तो व्यवस्था को कोसते हैं और मान लेते हैं की हमारी जिम्मेवारी समाप्त हो गई .
आपराधिक लापरवाही पहले भी स्कूली बच्चों के लिए मौत की संवाहक बनती रही है ,समाचार माध्यम हों या हम भारत के लोग हादसों के बाद व्यवस्था को कोसते तो हैं पर व्यवस्था की जिस चूक की वजह से हादसा हुआ उस चूक को दुरुस्त कराने के लिए हम कोई सार्थक पहल नहीं करते यह एक सामाजिक बिडम्बना है.
एटा हादसे पर गौर करें तो हम पाते हैं कि ऐसे हादसों से बचने के लिए समय समय पर प्रशासनिक और न्यायिक दिशा निर्देश भी जारी होते हैं ,नियम भी बनाए जाते हैं पर उन पर अमल की निगरानी की कार्य संस्कृति न तो प्रशासनिक स्तर पर नजर आती है न ही सामजिक स्तर पर .अभिभावक भी यह सुनिश्चित नहीं करते की घर से स्कूल तक आवागमन का जो साधन स्कूल प्रबंधन उनसे भारी भरकम फीस लेकर दे रहा है वह उनके बच्चों की सुरक्षित यात्रा के मानकों पर सही है या नहीं ?
सुप्रीम कोर्ट ने इस दिशा में बहुत स्पष्ट दिशा निर्देश दे रखे हैं ,परन्तु इन दिशानिर्देशों के अनुपालन की निगरानी कार्यपालिका नहीं करती यह हादसों का इतिहास बताता है.
सीधे तौर पर एटा की इस ह्रदय विदारक दुर्घटना के लिए स्कूल प्रबंधन जिम्मेवार है क्योंकि उसने जिला प्रशासन के आदेश के वावजूद स्कूल खुला रखा और दुर्घटना की शिकार हुई बस पर जो इंतजाम थे वह सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों के अनुसार नहीं थे .परन्तु इस हादसे से शिक्षा विभाग ,परिबहन विभाग, जिला और पुलिस प्रशासन भी उतना ही जिम्मेवार है जिसने यह सुनिश्चित नहीं किया की स्कूल की परिबहन व्यवस्था मानक के अनुरूप थी या नहीं .इस हादसे के लिए स्कूल प्रबंधन के साथ शिक्षा विभाग ,परिबहन विभाग, जिला और पुलिस प्रशासन की भी जबाबदेही बनती है ,उनके खिलाफ भी स्कूली बच्चों की दर्दनाक मृत्यु के लिए आपराधिक मुकदमा कायम किया जाना चाहिए .
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