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विभिन्न राजनैतिक दलों द्वारा चुनाव जीतने के लिए आजमाए जाने वाले हथकंडों में चुनावी घोषणा पत्रों की अहम् भूमिका होती है .मतदाताओं को लुभाने ,बरगलाने ,येन केन प्रकारेण उनका वोट हासिल करने के लिए जातीय ,क्षेत्रीय ,सांप्रदायिक ध्रुवीकरण ,शराब ,कबाब ,साडी धोती ,नगदी बांटना हमारी चुनावी व्यवस्था की अनिवार्यता बन चुकी है .आदर्श आचार संहिता एक ऐसे नैतिक उपदेश की तरह है जिसे मानना ,न मानना चुनावी महारथियों की मर्जी पर निर्भर करता है .चुनाव आयोग नोटिस जारी करने ,चेतावनी जारी करने से आगे कुछ भी करता नजर नहीं आता .चुनाव आयोग की स्थिति एक नख दन्त विहीन संस्था जैसी होती है .चुनाव सुधारों की शुरुवात चुनाव आयोग को वैधानिक तौर पर और ताकत दे कर की जानी चाहिए .
चुनावी घोषणा पत्रों में लोक लुभावन घोषणाएं करना आम चलन में है .इन घोषणा पत्रों को वाध्यकारी बनाने की जरुरत है .राजनैतिक दलों को चुनावी घोषणा पत्रों में अव्यावहारिक घोषणाओं से रोकने के ठोस उपाय किये जाने चाहिए .इस दिशा में ऐसे कानूनी प्राविधानों की व्यवस्था होनी चाहिए जो राजनैतिक दलों के चुनावी घोषणा पत्र को वाध्यकारी बनाएं .घोषणा पत्र में किये गए वायदों ,कार्यक्रमों का रोड मैप ,उनके क्रियान्वयन के लिए आर्थिक संसाधनों ,श्रोतों का उल्लेख अनिवार्य किया जाना चाहिए .यदि हमारे विधिवेत्ता इस दिशा में कोई सार्थक और सकारात्मक राह चुनाव आयोग को दिखा सकें तब निश्चित रूप से वह राह लोकतंत्र को मजबूत करेगी .चुनावी घोषणा पत्रों के प्रति राजनैतिक दलों को हर हाल में जबाबदेह बनाया जाना चाहिए .
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