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भाजपा शासित छत्तीसगढ़ के सुकमा में 24 अप्रैल 017 के नक्सल हमले ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया है कि इस हमले में मारे गए सीआरपीएफ के जवानों कि मौत कि वजह भले नक्सली बने हों पर इन हृदयविदारक मौतों कि असली गुनाहगार छत्तीसगढ़ सरकार भी है और केंद्र सरकार भी।
ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे जवानों को सरकार और उसकी व्यवस्था जानबूझ कर मौत के अंधे सफ़र पर भेजने का काम करती रही है।
महज एक माह पहले उसी सुकमा जिले में नक्सल हमले में सीआरपीएफ के 12 जवान मारे गए थे। पांच जवान गंभीर रूप से घायल हुए थे। माओवादियों ने ये हमला रास्ता खोलने वाली आरओपी टीम पर किया था।सीआरपीएफ की 219वीं बटालियन के जवान रोड खुलवाने के लिए भेज्जी थाना इलाके में निकले हुए थे। कोत्ताचेरु के पास पहले से घात लगाए माओवादियों ने उन पर हमला बोला था।
24 अप्रैल 017 को नक्सल हमले में सीआरपीएफ के 26 जवान मारे गए। चिंतागुफा के बुर्कापाल इलाके में सीआरपीएफ़ के जवानों का एक दल रोड ओपनिंग पार्टी के तौर पर इलाके में गश्त पर था।इस इलाके में सड़क बनाई जा रही थी, जिसकी सुरक्षा के लिए जवानों का दल निकला था।उसी समय माओवादियों ने पहले से घात लगा कर हमला किया। मारे गए सभी जवान सीआरपीएफ की 74वीं बटालियन के थे।
11मार्च 017 के नक्सल हमले से न तो छत्तीसगढ़ सरकार ने कोई सबक लिया न ही केंद्र सरकार ने। यदि सबक लिया होता तब 24 अप्रैल 017 को नक्सल हमले में सीआरपीएफ के 26 जवान न मारे जाते।
इसके पहले 6 अप्रैल, 2010 को माओवादियों ने अब तक के अपने सबसे बड़े हमले में सीआरपीएफ की 62वीं बटालियन और छत्तीसगढ़ पुलिस के जवानों की टुकड़ी पर हमला किया। इस हमले में 75 सीआरपीएफ जवान मारे गए थे। दंतेवाड़ा में 17 मई 2010 को दंतेवाड़ा से सुकमा जा रहे सुरक्षाबल के जवानों पर माओवादियों ने बारूदी सुरंग लगा कर हमला किया था। इस हमले में सुरक्षाबल के 36 लोग मारे गए थे। मारे जाने वालों में 12 आदिवासी एसपीओ भी शामिल थे। 25 मई 2013 को छत्तीसगढ़ की दरभा घाटी में माओवादियों के हमले में आदिवासी नेता महेंद्र कर्मा, कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार पटेल, पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल समेत 30 लोगों को मौत हो गई थी।
केंद्र सरकार हमारे जवानों कि जान के प्रति कितनी गंभीर कितनी संवेदनशील है इस बात कि पुष्टि करने के लिए इतना ही काफी है कि जिस सीआरपीएफ ने जम्मू कश्मीर में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई वह सुरक्षा बल नेतृत्व विहीन है । सीआरपीएफ़ के महानिदेशक के दुर्गा प्रसाद फ़रवरी में ही रिटायर हुए थे, मगर उनकी जगह किसी महानिदेशक की स्थाई पोस्टिंग अब तक नहीं की गई है। अपने नाकारापन को छिपाने के लिए 24 अप्रैल 017 के हमले में घायल जवानों को अनुशासन की चाबुक दिखा कर जुबान बंद रखने की चेतावनी दी गई। मृतकों को श्रद्धांजलि देने पहुंचे केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह मीडिया के चुभते सबालों को अनुत्तरित छोड़ कर प्रेस कांफ्रेंस से उठ गए।
नक्सल हमलों में लगातार हो रही केंद्रीय सुरक्षा बल के जवानों की मौत निश्चित तौर पर हमारी व्यवस्था की वजह से हो रही है। खरतनाक मिशन पर जवानों की तैनाती करने वाली केंद्र सरकार हमारे जवानों की जान की कितनी परवाह करती है ,उनके प्रति वह कितनी संवेदनशील है? इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है की बार बार की गई मांग के वावजूद बुलेट प्रूफ हेलमेट तक मुहैया नहीं करा सकी। जो जवान मारे गए उनमे अधिकांश की मौत की वजह बुलेट प्रूफ हेलमेट का न होना बताई जा रही है।
केंद्र और प्रदेश दोनों जगह यदि भाजपा सरकार न होती तब भाजपा इन हमलों का ठीकरा प्रदेश सरकार पर फोड़ती। इसमें कत्तई कोई संशय नहीं है की इन नक्सल हमलों के लिए यदि कोई जिम्मेवार है तब ख़ुफ़िया तंत्र ,केंद्र और प्रदेश सरकार ही है। जिसके पास नक्सल तंत्र को ध्वस्त करने की न तो कोई ठोस नीति है ,न कार्य योजना।
छत्तीसगढ़ की रमन सिंह सरकार ने न जाने क्यों सूबे के पुलिस तंत्र और नक्सल क्षेत्र में तैनात केंद्रीय सुरक्षा बल के बीच सामरिक सामंजस्य और समन्वय की जरुरत नहीं समझी। नक्सल हमलों के कोई ख़ुफ़िया छत्तीसगढ़ सरकार के पास आखिर क्यों नहीं होती ,क्यों नक्सल रणनीति बार बार सफल होती है व्यवस्था के नाकारेपन से कब तक मारे जाते रहेंगे हमारे जवान ?हमारे जवानों की मौत होती है ,रमन सिंह और राजनाथ सिंह जाते हैं श्रन्धांजलि ,घायलों का हाल चाल लेने की रस्म अदायगी करते हैं और कुम्भकर्णी नींद सो जाते हैं। यह स्थिति बहुत निराश करने वाली है। यह स्थिति विस्फोटक शक्ल अख्तियार करे उसके पहले उन खामियों को शीर्ष प्राथमिकता पर दूर किया जाना चाहिए जो हमारे जवानों को मौत का निवाला बनाती रही हैं।
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