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राष्ट्रीय महिला आयोग तथा तेलंगाना राज्य महिला आयोग के संयुक्त तत्वाधान में कार्य स्थल पर महिलाओं का यौन शोषण (रोकथाम ,निषेध एवं निवारणं )अधिनियम 2013 पर आयोजित एक सेमिनार में राष्ट्रीय महिला आयोग की सचिव सतबीर बेदी ने जो कुछ कहा वह गंभीर चिंता का विषय है।
सतबीर बेदी ने बहुत साफगोई से जहाँ महिलाओं का यौन शोषण (रोकथाम ,निषेध एवं
निवारण )अधिनियम 2013 का दुरूपयोग किये जाने ,महिलाओं द्वारा इस अधिनियम की आड़ में ब्लैक मेल किये जाने की बात स्वीकार की वहीँ उन्होंने कार्य स्थल पर यौन उत्पीड़न की स्थिति का भी जिक्र किया। उन्होंने बताया की कार्य स्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकार तकरीबन 70 फ़ीसदी महिलायें शिकायत करने से बेहतर विकल्प चुप्पी ओढ़ने को मानती हैं ।वो शिकायत ही नहीं करती हैं।
यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं की चुप्पी को समझने की जरुरत है। काम काजी महिला
हो ,या स्कूल ,कालेजों में पढ़ने वाली लड़किया ,घर गृहस्थी में लगी गृहिणी हो यौन उत्पीड़न पर वह मौन रहती है ,प्रतिकार नहीं करती तो इसके लिए हमारी संकीर्ण सोंच ही दोषी है। उसे संवेदना ,सहानुभूति की जगह सामाजिक ,पारिवारिक उपेक्षा झेलनी पड़ती है ।उसके साथ ऐसा व्यव्हार किया जाता है मानो यौन उत्पीड़न का शिकार होना उसका अपराध है।
यौन उत्पीड़न की रोक थाम के लिए कानूनी प्राविधानों की कमी नहीं है पर उनके अमल का तौर तरीका इतना लचर ,इतना घटिया है की पीड़िता को उस कानूनी प्रक्रिया से गुजरते हुए बार बार वाचिक यौन प्रताड़ना का दंश झेलना होता है। एक शोध में घरेलु यौन उत्पीड़न और बलात्कार का जो भयावह सच हमारे सामने आया वह किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्मनाक है ।बलात्कार ,दैहिक शोषण के तकरीबन 80 प्रतिशत मामलों में परिवार के ,रिश्तेदारी के और परिचितों के बीच के पुरुष अपराधी चिन्हित हुए थे।
सबाल है समाज की संकीर्ण मानसिकता से भयातुर हो कर यौन उत्पीड़न की शिकार चुप्पी ओढ़ कर घुट घुट कर क्यों जिए ? क्या यह चुप्पी यौन उत्पीड़न को जाने अनजाने बढ़ावा नहीं देती ?यौन उत्पीड़न की रोकथाम कड़े से कड़े कानूनी प्राविधानों ,अधिनियमों से कत्तई संभव नहीं है ।इसके लिए ” लोग क्या कहेंगे ? ” के मानसिक दबाव से महिलाओं को उबरने की पहल खुद करनी होगी ।उन्हें यौन उत्पीड़कों को बेनकाब करने के लिए ” लोग क्या कहेंगे ? ” के मानसिक दबाव की बेड़ियों को तोडना होगा।
मेरे पास एक युवती कुछ दिन पहले आई। स्नातक स्तर तक शिक्षित यह युवती अपने मासूम बच्चों के लालन पालन के लिए एक वयो वृद्ध चिकित्सक की क्लिनिक में काम करती थी ।कुछ दिन बीते और उसके यौन उत्पीड़न की शुरुवात हो गई ।पानी सर से ऊपर आने पर वह अपनी व्यथा सुनाने मेरे पास आई ।मैंने उसे उक्त वयो वृद्ध चिकित्सक को बेनकाब करने को कहा तब उसने ऐसा न करने की दो मजबूरी बताई। पहली यह की लोग क्या कहेंगे ,दूसरी यह की बात उसके पति तक पहुंचेगी तब उसका वैवाहिक जीवन खतरे में पड़ जाएगा। समाज उसे ही जलील करेगा। यह वाकया हमें बताता है की यौन उत्पीड़न सह कर भी कोई पीड़िता चुप्पी क्यों ओढ़ लेती है।
इस दिशा में महिला हितों के पैरोकारों ,बुद्धिजीवियों को सार्थक ,सकारात्मक पहल करनी होगी। कार्य स्थल पर यौन उत्पीड़न की रोक थाम के उद्देश्य से बने महिलाओं का यौन शोषण (रोकथाम ,निषेध एवं निवारणं )अधिनियम 2013 की विंदुवार जानकारी का व्यापक प्रचार-प्रसार करने की दिशा में भी महिला हितों के पैरोकारों ,बुद्धिजीवियों को सार्थक ,सकारात्मक पहल करनी होगी। यह पड़ताल करनी होगी की इस अधिनियम के चैप्टर 3 के सेक्शन 4 ,5 ,6,7 के मुताविक आतंरिक परिवाद समितियों ,स्थानीय परिवाद समितियों का गठन हुआ है या नहीं ? यह परिवाद समितियां अपने कर्तव्यों का सही ढंग से निर्बहन कर रही हैं या नहीं ?
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